Sunday, December 25, 2016

फेसबुक पर भी है सरकार की पैनी नजर

अगर आप सोशल साइट फेसबुक पर पोस्ट करते हैं तो यह खबर आपके लिए ही है। सरकार फेसबुक पर पैनी नजर रख रही है। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक को इस साल की पहली छमाही में भारत की विभिन्न सरकारी एजेंसियों से फेसबुक उपयोक्ताओं, उनके खातों का रिकार्ड रखने के लिए 609 आग्रह मिले हैं। ये आग्रह 850 उपयोक्ताओं या उनके खातों से जुड़े थे। इस अमेरिकी कंपनी का कहना है कि आग्रहों की संख्या के लिहाज से भारत इस अवधि में अमेरिका, कनाडा व ब्राजील के बाद चौथे स्थान पर रहा।

फेसबुक ने अपनी ‘सरकारी आग्रह रपट’ में यह खुलासा किया है। इस रपट में कंपनी बताती है कि उसे अपने उपयोक्ताओं के रिकार्ड के बारे में किन किन सरकारों से कितने आग्रह मिले। फेसबुक के उप वाणिज्य दूत किन्स सोंडरबी ने कहा कि जब कंपनी को डेटा रिकार्ड का आग्रह मिलता है तो वह संबंधित एकाउंट के स्नैपशाट रखती है। आलोच्य अवधि में कंपनी को 67,129 फेसबुक खातों के बारे में 38,675 आग्रह मिले।

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का लगभग सभी लोग इस्तेमाल करते हैं। हर रोज इसका इस्तेमाल करने के बाद भी कई ऐसी चीजें है जो आप इसके बारे में नहीं जानते। इनके इस्तेमाल से आप प्राइवेसी प्रोटेक्ट करने से लेकर ऐसे मैसेज भी पढ़ सकते हैं जो आपको भेजे गए हैं और आप जानते ही नहीं।

गौरतलब है कि लोग अक्सर सरकार के पक्ष में या उसके विरोध में या किसी खास शख्सियत के पक्ष या विरोध में पोस्ट करते रहते हैं। कई बार तो लोग आपत्तिजनक पोस्ट भी करते हैं। सरकारी एजेंसियां साइबर कानून के तहत ऐसे फेसबुक पोस्ट का विश्लेषण करती हैं और जरूरी होता है तो उसके डेटा सुरक्षित रखने का अनुरोध फेसबुक से करती हैं। कई बार ऐसे मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसले होते हैं।

Friday, October 7, 2011

सोशल नेटवकिंüग साईट्स का संभलकर करें प्रयोग

 career


भले ही सोशल नेटवकिंüग का क्रेजी आज का युवा इंटरनेट के मामलों में काफी समझदार हो गया हो लेकिन उसे ये नहीं भूलना चाहिए कि एक छोटी सी भूल उसका बना बनाया खेल बिगाड सकती है। फेसबुक के चक्कर में मर्डर, धमकी और किड्नेपिंग के अब कई मामले सामने आ चुके हैं। सोशल नेटवकिंüग में खतरे हैं तो क्या इसका यह मतलब नहीं है कि हमें इन साइट्स को ब्लॉक कर देना चाहिए या हमें इन साइट्स का प्रयोग ही नहीं करना चाहिए। ऎसा बिल्कुल भी नहीं है, कि सोशल नेटवकिंüग साइट पूरी तरह से सुरक्षित है। मगर केवल तब तक जब तक आप इसका सुरक्षित ढंग से प्रयोग करें। इसका रखें ध्यान - हमेशा अपनी पूरी जानकारी न दें।
- अपनी पर्सनल फोटो आदि को अपलोड न करें।
- अकसर नाबालिक बच्चे अपनी गलत जानकारी देकर इन अकाउंट्स को खोल लेते हैं। यदि आपके किशोर और किशोरियां भी इसी तरह के अकाउंट बना रहे हैं तो उन्हें ऎसा करने से रोकें।
- सोशल नेटवकिंüग के जरिए बने दोस्तों को अपनी निजी जीवन की जानकारी न दें।
- ध्यान रहे कि सोशल नेटवकिंüग साइट्स नए लोगों से मिलने और सभी से जु़डे रहने का एक माध्यम है। इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा न बनने दें।
- आपके अपने लोग आपके करीब हैं। इन साइट्स का प्रयोग केवल आप नए लोगों से जु़डने या अपनी नेटवकिंüग के दायरे को बढ़ाने के लिए करें। अपनी निजी जिंदगी को दूसरों पर जाहिर न होने दें। इसके लाभ - आप आसानी से नए लोगों को दोस्त बना सकते हैं। बस केवल एक फ्रेंड रि`ेस्ट एक्सेप्ट करते ही नई दोस्ती का दौर शुरू।
- सोशल नेटवकिंüग आपको अकेलेपन का शिकार नहीं होने देता है।
- आप हमेशा व्यस्त रहते हैं। - आपको इस बात का अहसास होता है कि कोई आपकी बात सुन रहा है। आपको दोस्तों की कमी महसूस नहीं होती है।
- कई बार सोशल नेटवकिंüग आपके बिजनेस को भी लाभ पहुँचा सकता है। नुकसान - सोशल नेटवकिंüग एक प्रकार की लत है। आप इसके आदी होते चले जाते हैं।
- यह मानसिक और भावनात्मक रूप से परेशान कर सकता है।
- आपके लिए इन साइट्स पर समय बिताना जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है। आप इसे इतनी ज्यादा प्राथमिकता देने लगते हैं कि आप अपने जीवन की अन्य महत्वपूर्ण चीजों को भूल जाते हैं।
- सबसे ब़डी चीज ये साइट्स आपके बहुमूल्य समय को बर्बाद करती हैं क्योंकि आप इन साइट्स पर बहुत समय तक फंसे रहते हैं।
- अकसर इन साइट्स में आप अपने आपको बेस्ट और परफेक्ट दिखाने के लिए झूठी जानकारी देते हैं। जो कि आपके व्यवहार और व्यक्तित्व को प्रभावित भी कर सकती है। कई बार इन साइट्स के कारण कुछ लोगों को डिप्रेशन जैसी समस्या भी होने लगती है।
- आपका डेटा और फोटोग्राफ का प्रयोग गलत कार्य के लिए भी किया जा सकता है।

Thursday, October 6, 2011

अनोखा भारत

जिस देश में हजारों लोग हर रात भूखे सोते हैं उसी देश में अपराधी आराम से तीन वक्त का खाना पेट भर के खाते हैं और साथ ही उनके स्वास्थ का भी पूरा ख्याल रखा जाता है ये वो लोग है जो खुले समाज में तमाम तरह के अपराधों को अंजाम देते है आखिर ये इतना दुर्भाग्यपूर्ण क्यूँ है की जहाँ एक और तो वो तबका है जो सारे दिन कड़ी मेहनत करता है और बड़ी मुस्किल से दो वक्त का खाना खा पाता है वही सरकार उन लोगों का पूरा ख्याल रखती है जो समाज में रोज नये अपराधों को जन्म देतें हैं साथ ही उनके मनोरंजन, खेल साथ ही उनकी पढाई-लिखाई हर चीज का पूरा ख्याल रखती है 

Tuesday, October 4, 2011

''हम लोग'' के 27 साल

देश का पहला हिंदी धारावाहिक 'हम लोग' सात जुलाई 1984  को शुरू हुआ और इसके 156  एपिसोड प्रसारित हुए. यह पारिवारिक धारावाहिक लोगों को खूब पसंद आया. इसे परिवार नियोजन के मकसद से बनाया गया था. लेकिन बाद में इस धारावाहिक ने समाज की तमाम कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. फिर भी लोगों ने इस धारावाहिक को खूब पसंद किया. आज इस धारावाहिक के कई कलाकार हमारे बिच नही हैं. 
 एक शानदार लेखक मनोहर श्याम जोशी, एक अदभूत निर्देशक पी.कुमार वासुदेव और बड़ी स्टार कास्ट ये सब मिलकर एक बढिया टीम बनी थी. तब दूरदर्शन का एकमात्र उद्देश्य लोगों को शिक्षित करना था. परन्तु आज वर्तमान में वक्त के साथ साथ दूरदर्शन का उद्देश्य भी बदल गया है. भूमंडालीयकरण के इस दौर में दूरदर्शन में भी बाजारवाद का असर साफ दिखाई दे रहा है. देश के लोगों को शिक्षित करने के स्थान पर अब दूरदर्शन का एक मात्र उदेश्य अपनी टीआरपी बदना मात्र रह गया है. 

Monday, March 14, 2011

छात्र आन्दोलन के ये सब से बुरे दिन हैं| छात्र आन्दोलनों का यह विचलन क्यों हैं अगर इसका विचार करें तो हमें इसकी जड़ें हमारी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था में दिखाई देगी| छात्र राजनीती के मूल्यों का स्थान आदर्श विहीनता ने ले लिया| कमोवेश समस्त  छात्र संगठन और छात्र नेता राजनितिक दलों की चेरी बन गये हैं| डी.एस.यू. के कोर ग्रुप की एक सदस्य बनोज्योत्सना का कहना हैं की बड़ी छात्र संघ पार्टियाँ जैसे ए.बी.वी.पी. या एन.एस.यू.आई. पार्टियाँ बीजेपी और कांग्रेस की शाखाएँ हैं जो इन राष्ट्रीय पार्टियों को मजबूती प्रदान करने और उनकी विचार धारा का प्रचार-प्रसार करना है| छात्र संघ के एजेंडा बभी अब राजनितिक पार्टियाँ तय कर रही हैं| 
  वहीं दूसरी ओर वाई.फॉर.ई. के अमीत जी का कहना है कि ये समूह किसी परिवर्तन का वाहन न बनकर अपनी ही पार्टी का साइनबोर्ड बनकर रह  गये हैं| इनकें सपने, आदर्श सब कुछ कहीं और तय होते हैं| छात्र संघ कि बदलती भूमिका और घटती प्रासंगिकता ने छात्रो के मन से उनके प्रति सहान-भूति खत्म कर दी है| छात्र संघ चुनावों को उन मुख्मंत्रियों ने भी प्रतिबंधित कर रखा है जो छात्र आन्दोलन से ही जन्में हैं| ऐसा लगता है कि छात्र संघ अब आम छात्रों कि शैक्षणिक और सांस्कृतिक प्रतिभा के उन्नयन के माध्यम नहीं रहे| वे अराजक तत्वों और माफियाओं के अखाड़े बन गये हैं| इस बात को मानते हुए अमीत जी कहते है इसका कारण विश्वविद्यालयों में चुनाव न होना है| आगे वे कहते है क्या आप उम्मीद कर सकते हैं आज के नौजवान दुबारा किसी जयप्रकाश नारायण के आसन पर आहान पर दिल्ली कि कुर्सी पर बैठी मदांध सत्ता को सबक सिखा सकते हैं| 
  हमारा मानना है कि छात्र आन्दोलन के दिन तभी बहुरेंगे जब परिसरों में दलील राजनीति के बजाये छात्रों का स्वविवेक, उनके अपने मुद्दे, शिक्षा, बेरोजगारी, महंगाई के सवाल एक बार उनके बीच होंगे| छात्र राजनीति के वे सुनहरे दिन तभी लौटेंगे जब परिसरों से निकलने वाली आवाज़ ललकार बनेगी|       

Monday, January 10, 2011

रैन बसेरों का संकट

अभावग्रस्त समाज के लिए हाड़ कपाती ठण्ड मारक साबित होती है | वास्तव में हर मौसम परिवर्तन पर ठण्ड, लू और बाढ़ से मरने वालों का जो आंकड़ा खबरों में नजर आता है, उसके मूल में गरीबी होती है | गरीब आदमी पेट तो भर लेता है, लेकिन पेट ढक नही सकता | पिछले दिनों दिल्ली में निराश्रित लोगों का रैन बसेरा उजाड़े जाने की खबरें आने के बाद सुप्रीम कोर्ट को दखल देनी पड़ी थी | विडंवना है कि आज स्वार्थ मानवता पर भरी पड़ रहा है | चंद पैसों के लालच में कुछ लोग समाज के निचले पायदान पर खड़े लोगों की छत का सहारा छिनने से भी गुरेज नही करते | एक समय था जब जनता के दुःख-दर्द को समझने वाले राजा सर्द रातों में घूम-घूमकर अपनी प्रजा का हल पूछते थे | अभावग्रस्त लोगों को गर्म कपडे बांटते थे | सार्वजनिक स्थलों पर अलाव जलाने की व्यवस्था की जाती थी | लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि लोकतान्त्रिक सरकारों में वह संवेदनशीलता नहीं पाई जाती | वातानुकूलित घरों में रहने वाले नेता फुटपाथों में रहने वालों का दर्द क्या महसूस करेंगे ? आज जब संपूर्ण भारत में तापमान में गिरावट का दौर लगातार जरी है तो रैन बसेरों कि संख्या नगण्य ही नजर आती है | राज्य सरकारें व स्थानीय निकाय इस दृष्टी से सदा से संवेदनहीन नजर आतें हैं | यही वजह है कि हजारों लोग रेलवे व बस स्टेसनों में रात गुजारतें है | वास्तव में विकास के आंकड़ें के उछाल के पीछे का काला सच इन फुटपाथों में सोये लोगों को देखकर लगाया जा सकता है | यह बतातें हैं कि देश में अमीरी-गरीबी की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है | यह सरकार की लोककल्यान्कारी नीतियों का यथार्थ बताती प्रतीत होती है |

Saturday, January 8, 2011

खुद अपनी आँख से

उस दिन मैं राजीव चौक स्टेसन पर मेट्रो का इंतजार कर रहा था | तभी नजर पड़ी एक युवा जोड़े पर | मेट्रो का पहला कोच महिलाओं के लिए आरक्षित हैं | वह जोड़ा वहीँ पर खड़ा था | गार्ड लड़के से वहां से निकलने के लिए कह रहा था | मगर लड़की उसे वहां से जाने नहीं दे रही थी | गार्ड खिसियानी हंसी के साथ उनसे गुजारिश कर रहा था, मगर लड़की लगातार उससे बहस किये जा रही थी | आसपास खड़ी महिलाएं देख रहीं थीं | मगर कोई कुछ बोल नहीं रही थीं | मैंने उनसे पूछा - क्या बात हैं ? लड़की थोड़ी हैरान हुई, मगर कुछ नहीं बोली | गार्ड ने कहा - सर, मैं इनसे कह रहा हूं की यह कोच केवल महिलाओं का है | यह अपने साथ इस लड़के को उस कोच में ले जाना चाहती हैं | मैंने लड़की से कहा- जब यह आपको कह रहा है कि यह कोच केवल महिलाओं के लिए है तो आप क्यों नहीं इसकी बात मानती | लड़की ने जवाब दिया- आप अपना काम कीजिये | मैंने कहा- काम तो करूंगा, मगर यह भी बता दूँ कि आप गलत कर रहीं हैं ? लड़की बोली- क्या गलत है ? मैंने कहा- यह कोच महिलाओं का है, आप किसी पुरुष को उसमें ले जाना चाहती हैं | लड़की ने तपाक से कहा- यह मेरा बॉयफ्रेंड है | जब किसी और को ऐतराज नहीं है, तो आप क्यों बीच में पड़ रहे हैं | मैंने कहा- नियम-कानून भी तो कोई चीज है | अब लड़की का पारा चढ़ गया | बोली- इतनी बातें कह रहे हैं, आप है कौन ? मैंने कहा मै पत्रकार  हूं | अपना फर्ज समझकर आपको समझा रहा हूं | सरकार ने आपकी हिफाजत के लिए ही यह नियम बनाया है आपको उसका पालन काना चाहिए | लड़की ने कहा- यह तो बस मेरे साथ कोच में खड़ा रहेगा | मैंने कहा- अगर आप जैसी २० से ३० पर्सेंट लड़कियां भी अपने बॉयफ्रेंड को बातचीत के लिए महिलाओं के कोच में ले जाना शुरू कर दें तो फिर उस कोच का ओचित्य क्या रह जाएगा | तभी एक पुलिस वाला आ गया | मैंने उसे सारी बातें बताई| उसने लड़की से कहा- अपने बॉयफ्रेंड के साथ जाना है, तो जनरल कोच में चली जाओ, जी भर के बातें करना कौन रोकता है | काहे झमेला कर रही है ? तब लड़का-लड़की वहां से चल दिए | जाते-जाते लड़की अंग्रेजी में यह कहना नहीं भूली- छोटी मानसिकता है इनकी पता नहीं कब कब सुधरेंगे ? जाते-जाते पुलिस वाले ने एक बड़ी बात कही कि बुरा मत मानिये, चाहे कानून तोड़ने की बात हो या भ्रष्टाचार की, सबकी शुरुआत आम आदमी से होती है | अगर मैं इस लड़की को कानून तोड़ने के लिए गिरफ्तार कर लेता तो इसके घर वाले किसी अफसर या बड़े नेता से फोन करवा देते और मुझे छोड़ना पड़ता, बदनाम हम हो जाते | अगर आम आदमी सुधर जाए तो सब कुछ सुधर जाएगा | हम पहले सिस्टम से सुविधाओं की मांग करते हैं फिर उन्हीं का गलत इस्तेमाल करते हैं | उस लड़की ने समाज से यही मानसिकता ली है |